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विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 29)




पर्वतों के पृष्ठ बसा हुआ मोती के समान चमकता एक क्षेत्र! जहां पर चारों ओर से हिम के कणों के टूटकर बिखरने से मद्धम गुंजायमान हो रह थी। आधुनिक दृष्टि से यह उतना विकसित नही हुआ था जितना कि आध्यात्मिक रूप से, इसी कारण यहां अब भी कई सुविधाएं मौजूद नही थीं। परन्तु गांव के मुख्य मंदिर का दिया दिन रात अनवरत जलता ही रहता था। आज वातावरण खुशनुमा था क्योंकि बड़े दिनों के बाद आज सूरज की किरणों ने इस स्थान को छुआ था। दोपहर बीतने वाली थी, गांव के पुजारी जी ने संध्या पूजन के लिए घाटी से पुष्प चुनने को गए।

अचानक वातावरण में तीक्ष्ण परिवर्तन हुए, दसों दिशाओं में अंधकार फैल गया, लोग जल्दी से जल्दी अपने अपने घरों में जाने लगे। अंधेरा इतना अधिक घना था कि चलने में कठिनाई हो रही थी। वह चलने के दिशा के विपरीत बल लगा रहा था, किसी ने इसपर ध्यान न दिया परन्तु आज सबको पहले से भिन्न लग रहा था।

इस घने स्याह में कुछ भी दृष्टिगोचर नही हो पा रहा था, यहां ठंडी ने अपने पांव पसारे हुए थे। वातावरण स्याह में नहाया, एक विचित्र खुशबू से भरा हुआ प्रतीत होता था।  वहां की हिम तीव्रता से पिघलने लगी, वातावरण में सामान्य से थोड़ी अधिक गर्मी उत्पन्न हुई। हिम के पर्वतों के ऊपर दो चमकती हुई आकृतियां नजर आने लगी।

प्रकृति के गोद में बसे इस गांव में सबकुछ पवित्र था, यहां का जल निर्मल और लोगो के हृदय पावन थे। वे शिव में विश्वास रखते और आपस में प्रेमभाव से रहते। अचानक फैले इस दबाव भरे अंधेरे में किसी के मुख से स्वर तक न निकल पा रहे थे, सब मन ही मन शिव से रक्षा करने की गुहार करने लगे। वातावरण में बढ़ रही गर्मी के कारण हिम पिघलने लगी, जिसके कारण तीव्र शोर उत्पन्न हुआ। सभी गांव वाले अपने घरों में दुबके महादेव से प्रार्थना कर रहे थे। कोई भी अचानक से बदले इस वातावरण का विरोध कर पाने में सक्षम नही था।


"डार्क फेयरीज को मरना होगा….?" एक खौफनाक स्वर गूंजा, यह स्वर आंच का था।

"हाहहा ……." ऐश भी व्यंगपूर्ण तरीके से हँसने लगी। आंच का शरीर पहले से अधिक तप रहा था और ऐश भी पहले से अधिक चमक रही थी। इसी कारण यहां का अंधेरा और अधिक गाढ़ा हो गया था और गर्मी बढ़ने लगी थी।

"आज संसार को पता चलना चाहिए कि डार्क फेयरीज़ क्या चीज है!" आंच क्रूर भाव से बोली।

"तो फिर इंतजार किसका है, अब तबाही की देवी को किसकी प्रतीक्षा है!" ऐश बोली और वह एक और बढ़ गई।

"हीहीही…"  अट्टहास करते हुए आंच की आंखों में शैतानियत चमकने लगी। "अंधकार होगा…..अब सिर्फ अंधकार होगा!"

अचानक से तेज हवाएं चलने लगी, अभी - अभी बढ़ रही गर्मी छू मंतर हो गई, अचानक से फिर ठंड बढ़ने लगी। घाटी में बसे इस क्षेत्र में इतनी
ठंडी कभी नही हुई। अचानक से चली इस शीतलहर ने पहले से जकड़े हुए लोगों के हाथ पांव जमाने शुरू कर दिए।

घाटी के दूसरी छोर पर स्थित मंदिर में जलता हुआ दिया जल-बुझ करने लगा। महादेव का यह मंदिर शक्ति का द्योतक और रक्षा का प्रतीक था। घाटी में बढ़ रही ठंडी से वहां के लोगों के बदन में विचित्र सिरहन दौड़ने लगी। कुछ जो इस वक्त जाग गए थे और इस दबाव भरे वातावरण का विरोध करने की कोशिश कर रहे थे वे महादेव से प्रार्थना करने लगे।

वायु का घनत्व लगातार बढ़ता जा रहा था, जिस कारण दबाव अधिक लगने लगा, अपनी उंगलियां हिलाने तक में भी लोगो को बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी। आज से पहले कभी अंधेरा इतना विचित्र और भयावह प्रतीत नही हुआ था। वातावरण में चारो ओर विचित्र सा मनहूसियत फैलने लगी। चारो ओर अपशकुन होने की सूचनाएं मिलने लगी, कुछ लोग जो जागे हुए थे वे इसे सत्य नही मानना चाहते थे। सभी अपने अपने घरों में, अपने परिवार के साथ कैद हो चुके थे। इस सत्य को नकारने का प्रयत्न करते हुए ग्रामवासी सोने का प्रयास करने लगे, परन्तु भूखे प्यासे सो पाना सम्भव नही था। अचानक से सभी को गहरी नींद लगने लगी, ठंड के कारण बदन ज्वर से तप रहा था, परन्तु इस समय कोई किसी की सहायता करने हेतु उपलब्ध नहीं था।

सन्नाटे का प्रतिबिंब बना हुआ यह क्षेत्र जीवित शमशान सा लगने लगा। यहां किसी भी जीव के उपस्थित होने के कोई संकेत नही मिल रहे थे। वायु  इतनी सघन हो गयी थी कि किसी पत्थर को पचास फ़ीट ऊपर से गिरने में दस मिनट लग जाते, यहाँ का वातावरण विज्ञान के नियमो के विरुद्ध चलने लगा था। घने अंधेरे में चमकती हुई दो छायाकृतियाँ मंदिर के पास उतरने लगी। उन्होंने अपने दाहिने पांव को मोड़कर, बाएं पांव के घुटने के करीब रखा हुआ था। आँच के हाथ में अग्नि के गोले नजर आ रहे थे, ऐश अपने हाथो को विचित्र मुद्रा में मोड़े हुए कुछ बड़बड़ा रही थी।  अगले कुछ ही क्षणों में डार्क फेयरीज़ धरातल के पास आ गयी और जमीन से कुछ ऊपर इसी अवस्था में ठहरी हुई इस जीवित श्मशान को देखकर ठहाके लगाने लगीं।

"तबाहियां, डर और यातना, लोभ क्रोध और मोह ही अंधेरे की ऊर्जा को बढ़ाते है परन्तु यह क्षेत्र इनमे से एक भी गुण नही रखता, इन्हें पता चलना चाहिए डर क्या होता है!" ऐश गुर्राते हुए बोली। उसे यह बिल्कुल भी स्वीकार नही था कि कोई आज के युग में सतयुगी बना बैठा रहे।

"थोड़ा आराम से ऐश! मैं इन सबको तड़पते हुए देखना चाहती हूँ!" आंच के चेहरे पर शैतानी भाव थे, उसके बदन की लपटें पहले से अधिक तेज हो रही थीं।

"अब हम इस संसार में सत्य और प्रेम का कोई भी अस्तित्व शेष नही बचने देंगे।" ऐश ने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में उलझाकर कुछ किया जिससे एक तेज ऊर्जा तरंग निकालकर मंदिर की ओर बढ़ी।

"अंधकार हो!" आँच चीखते हुए अपने दोनों हाथों को जमीन पर पटक देती है, अचानक से यहां तेज भूकम्प के झटके आने लगते हैं। डार्क फेयरीज़ वायु में कुछ ऊपर खड़ी होकर इस दृश्य का आनंद लेने लगीं। बर्फ से घिरे इस स्थान पर लावा फूटने लगा, मंदिर का एक स्तम्भ टूटकर धड़ाम से एक ओर गिर गया, जिस कारण छत एक ओर लटक गई, विवशता से भरे लोग चीख पुकार तक पाने में असमर्थ थे, डार्क फेयरीज़ उनकी विवशता भरी मृत्यु को हँसते हुए देख रही थी।

बड़े-बड़े भूमि खण्ड उछलने लगें, लोगो की चीख गले में ही अटकी रह गयी, किसी ने स्वप्न में भी आइए मृत्यु की कल्पना नही की थी। वे मन ही मन महादेव से उन सबकी रक्षा की प्रार्थना करने लगे।

"कितनी आनन्दित होती है ऐसी विवशता भरी मृत्यु, अहा..!" अपने दोनों हाथों को मोड़कर आँच के बराबर होते हुए ऐश चटकारे लेकर बोली।

"सदियों से इसी प्रतीक्षा में थे जब हमें पुनः अंधेरे की सेवा इस प्रकार करने को मिले, अब जाकर वह इच्छा पूर्ण हुई।हाहाहा…." आँच भी ठहाका लगाकर हंसने लगी।

बर्फीली पहाड़ियों से घिरा यह स्थान लावे में नाहा गया, इस लावे में गर्मी नदारद थी अन्यथा ऐसे में हिम् पिघलने लगती परन्तु अब तक हिम् इतने बड़े पैमाने पर पिघलना आरंभ नही हुई।

"तुम सुनो इनकी मौन चीख पुकार..देखो इसी को अंत कहते हैं!"  आँच एक ओर बढ़ते हुए बोली।

"अभी हमें हरेक पुण्यस्थल पर यही मंजर लाना होगा, जब तक अंधेरा सबका स्वामी नही हो जाएगा डार्क फेयरीज़ नही मरेंगी। डार्क फेयरीज़ को मरना होगा हाहाहा…!" दोनो जोरदार अट्ठहास करने लगीं।

"नही रुक जाओ! ऐसा मत करो।" वातावरण में एक स्वर गुंजा।

"तुम…" दोनो की आँखे फैल गयी।

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"आप क्या कहना चाहते हैं स्वामी?" वीर ने अपने क्रोध को छिपाते हुए विनम्रतापूर्वक नराक्ष से पूछा।

"जो मैं सदैव से चाहता हूँ वीर!" नराक्ष कुटिल मुस्कान सजाये बोला

"आपने विस्तार और मैत्रा को यूं ही भेज दिया और अब आपको ग्रेमन से युद्ध चाहिए!" वीर अपनी झल्लाहट प्रदर्शित करने ही वाला था, कि उसपर डर का साया हावी होने लगा। "आपका यह विचार पूर्णतः उचित है स्वामी।" वह डरते हुए बोला।

"इस समय में ग्रेमन कई शक्तियां भी क्षीण होंगी हालांकि विस्तार द्वारा खोला गया यह द्वार बहुत ही छोटा है परंतु फिर भी युद्ध तो आरंभ किया ही जा सकता है। मेरे सदियों पुराने इस स्वप्न के पूर्ण होने का समय आ गया।" नराक्ष, सिंह के समान गरजते हुए बोला।

"मैं अपनी सुपीरियर आर्मी को तैयार करता हूं मेरे स्वामी!" सुपीरियर लीडर नराक्ष के इस बर्ताव से डरकर बोला।

"बहुत बढ़िया! इस बार यह युद्ध बड़े पैमाने पर होगा, क्योंकि यह कलियुग है और उजाले की दुनिया में भी काली शक्तियों का प्रताप अधिक है।" नराक्ष मुस्कुराते हुए बोला। इस मुस्कान को लिए हुए भी वह अत्यधिक क्रूर दिखाई दे रहा था।

वीर को अब तक यही समझ नही आ रहा था कि नराक्ष चाहता क्या है, वह भी सुपीरियर लीडर के साथ बाहर निकलने लगा। दोनो ने झुककर नराक्ष को प्रणाम किया।

"बाहर के दुनिया की कोई भी शक्ति हमारे काम नही आएगी, डर और यातनाओ से मिलने वाली ऊर्जा ही हम जैसे अंधेरे जीवों का भोजन है और इसी से हमें शक्तियां मिलेगी।" नराक्ष ने स्पष्ट किया।

"इस युद्ध से भी उजाले के संसार में भय और काली शक्तियों की वृद्धि होगी मेरे स्वामी।" वीर चापलूसी भरे स्वर में नराक्ष के योजना की प्रसंसा करता हुआ वहां से बाहर निकला। वह अब भी विस्तार को अवसर मिलते ही मार देना चाहता था, नराक्ष के व्यवहार से भी यही लगा कि वह भी यही चाह रहा हो परन्तु उसको समझ पाना सम्भव ही नही है।

दोनो ने युद्ध की तैयारी बड़े पैमाने पर कर दी, इस युद्ध में अंधेरे की दुनिया से ज्यादा उजाले की दुनिया पर प्रभाव पड़ने वाला था।

क्रमशः….


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1 Comments

Kaushalya Rani

25-Nov-2021 10:20 PM

Nice part

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